‘कॉमनवेल्थ गेम्ज’ और राजभाषा हिंदीं
अक्टूबर 13, 2009
अगले वर्ष इसी माह (3 से 14 अक्टूबर, 2010) अपने देश, ‘इंडिया’, में ‘कॉमनवेल्थ गेम्ज’ (जिन्हें हिंदी में शायद राष्ट्रकुल खेल कहा जाता है) का ‘भव्य’ आयोजन होना है । मेरी शुभकामनाएं आयोजकों के प्रति कि उन्हें इस आयोजन में पूर्ण सफलता मिले तथा वे देश की ‘दांव पर लगी प्रतिष्ठा’ को बचाने में कामयाब रहें । उक्त खेल उत्कंठित देशवासियों तथा उत्सुक खेलप्रेमियों की आकांक्षाओं एवं अपेक्षाओं के अनुकूल संपन्न होवें यह मेरी दैवी शक्तियों से प्रार्थना है । (आयोजकों की वेबसाइटः http://www.cwgdelhi2010.org/home.aspx)
समाचार माध्यमों में छपी खबरों से ऐसा लगता है कि उक्त आयोजन की तैयारियां संतोषजनक नहीं चल रही हैं । खैर तैयारी के बारे में कुछ कह पाना शायद आम नागरिक के लिए संभव नहीं । लेकिन एक बात पर टिप्पणी करने का मेरा भी मन हो आया, जब मेरी नजर संबंधित ‘लोगो’ (क्या कहते हैं इसे, प्रतीकचिह्न ?) पर पड़ी, जिसे यहां इन शब्दों के साथ छाप रहा हूं । मेरी जानकारी में ‘हिंदी’ राजभाषा है, और देवनागरी, न कि रोमन, उसकी लिपि है । मेरे अनुमान से अपने देश की सरकार इस राजभाषा को स्थान देती है, कम से कम मुद्रित सामग्री में । अगर सरकार से पूछा जाय तो यही सुनने को मिलेगा कि राजभाषा का प्रयोग अधिकाधिक हो रहा है और उसे बढ़ावा देने के लिए तमाम कोशिशें जारी हैं । अगर स्थान नहीं देगी तो राजभाषा किस काम की रह जायेगी भला ? किंतु ‘कॉमनवेल्थ गेम्ज’ के लिए जो ‘लोगो’ (logo) प्रयोग में लिया जा रहा है उसमें कहीं एक भी अक्षर देवनागरी का नहीं है, जैसा पहले चित्र से जाहिर है | क्या इस लोगो में अंग्रेजी के साथ देवनागरी में भी वांछित शब्दों का उल्लेख नहीं होना चाहिए था ? लोगो क्या वैसा नहीं हो सकता था जैसा मेरे द्वारा संशोधित दूसरे चित्र में दिखाया गया है ? ऐसा ही कुछ संभव था और है । क्या वजह है कि आयोजकों को राजभाषा से इतना परहेज है ? क्या वजह है कि सरकार राजभाषा के प्रति इतना उदासीन है, लेकिन फिर भी उसे ‘राजभाषा’ खिताब से वंचित करने पर विचार नहीं करती ?
लोगो में अंकित शब्द वास्तव में प्रथमतः राजभाषा में और तत्पश्चात् उसके साथ अंग्रेजी में होने चाहिए थे, क्योंकि संविधान के अनुसार हिंदी (देवनागरी लिपि में) प्रमुख राजभाषा है और अंग्रेजी उसकी सहायक राजभाषा । सरकारी तंत्र ने घोषित सांविधानिक नीति के विरुद्ध अंग्रेजी को प्रमुख राजभाषा का दर्जा दे रखा है । फिर भी घोषित राजभाषा अंग्रेजी की सहायक राजभाषा के तौर पर तो प्रयुक्त हो ही सकती है । राजभाषा हिंदी के प्रति इतना भी सम्मान अथवा सदाशयता नीतिनिर्धारकों के मन में क्यों नहीं है कि थोड़ा बहुत रस्मअदायगी ही निभा लें ?
एक और बात मेरे जेहन में उठती है । विश्व के अन्य प्रमुख देश खेल और तत्सदृश कोई और आयोजन करते हैं तो पूरी कार्यवाही अंग्रेजी के अतिरिक्त अपनी भाषा में भी प्रस्तुत करते हैं । याद किजिए जब चीन में ओलंपिक खेल संपन्न हुए थे । अपने देश में क्या होगा ? क्या उक्त खेलों के अवसर पर कहीं देवनागरी लिखी देखने को मिलेगी ? कहीं हिंदी लफ़्ज़ सुनने को मिलेंगे ? मुझे शंका है कि उस मौके पर भी अपनी राजभाषा सदा की तरह तिरस्कृत ही रहेगी ।
मुझे अंग्रेजी के प्रयोग पर आपत्ति नहीं है । विश्व में अन्य देश भी इसको महत्त्व दे रहे हैं, लेकिन इतना नहीं कि अपनी मौलिक भाषाओं को ही भूल जाएं । प्रमुख देशों में कोई ऐसा नहीं होगा जहां अपने देश की भाषा को शासित प्रजा की भाषा के तौर पर देखा जाता हो और अंग्रेजी को शासकों की भाषा बने रहने दिया जा रहा हो । देश में दो प्रकार की भाषाएं हैं, एक आम जन की देसी भाषाएं और दूसरे अंग्रेजी जो आज भी देश पर राज करने वालों की भाषा है, ठीक वैसे ही जैसे विदेशी राज में था । राजनीतिक तौर पर स्वतंत्र होने के बावजूद इस देश का शासक वर्ग स्वयं को आम जनता से ऊपर मानता है और अपने को उनसे अलग रखने के लिए अंग्रेजी का हथियार इस्तेमाल करता आ रहा है । क्या ऐसी मानसिकता वाले शासकों से यह देश कभी मुक्त हो सकेगा ? शायद कभी नहीं ! – योगेन्द्र जोशी