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पिछले कुछ समय से मैं एक प्रश्न का ‘संतोषप्रद’ उत्तर (महज उत्तर नही, संतोषप्रद उत्तर!) पाने की चेष्टा कर रहा हूं । हमारे संविधान निर्माताओं ने हिंदी को देश की राजभाषा घोषित किया । क्या सोचकर किया इसे तो ठीक-ठीक वही समझते रहे होंगे । आज हम इसलिए-उसलिए कहते हुए तब के सोचे गये कारणों की व्याख्या अवश्य कर सकते हैं । परंतु क्या कारणों को समझ लेना ही पर्याप्त है ? हममें से अधिकांश जन यही कहेंगे कि हिंदी को राजभाषा तो होना ही चाहिए था, और इसलिए वह राजभाषा मानी भी गयी । परंतु क्या वह वास्तव में राजभाषा बन सकी है या राजभाषा उसके लिए एक अर्थहीन उपाधि बनकर रह गयी है ? क्या वह बतौर राजभाषा प्रयुक्त हो रही है ? मैं स्वयं से पूछता हूं कि क्या संविधान द्वारा हिंदी को ‘दी गई’ राजभाषा की उपाधि सार्थक है

मुझे उक्त प्रश्न का उत्तर नकारात्मक मिलता है । राजभाषा होने के क्या मतलब हैं, और हकीकत में जो होना चाहिए वह किस हद तक हो रहा है, इन बातों की समीक्षा की जानी चाहिए । आज हिंदी को राजभाषा घोषित हुए साठ वर्ष होने को हैं । आप कहेंगे साठ वर्ष बहुत नहीं होते हैं किसी राष्ट्र के जीवन में । लेकिन यह भी सच है कि इतना लंबा अंतराल कुछ कम भी नहीं होता है । बात यूं समझिएः पदयात्रा पर निकला व्यक्ति दिन भर में औसतन 20-25 किलोमीटर चल सकता है । 20-25 नहीं तो 15-20 कि.मी. ही सही, या थोड़ा और कम की सोचें तो 12-15 कि.मी. तो चलना ही चाहिए । हम उससे 9 दिन में हजार-पांचसौ कि.मी. की पदयात्रा की अपेक्षा नहीं कर सकते । लेकिन सौ-डेड़सौ की उम्मीद करना तो गैरवाजिब नहीं होगा न ? यदि ‘नौ दिन चले अढाई कोस’ वाली बात घटित हो रही हो, तो क्या संतोष किया जा सकता है ? अपनी राजभाषा का हाल कुछ ऐसा ही है । सो कैसे इसे स्पष्ट करने का विचार है मेरा इस और आगामी पोस्टों में ।

अपने अध्ययन तथा चिंतन (मेरा विश्वास है कि मैं कुतर्क नहीं कर रहा हूं) की बात करने से पहले में संविधान द्वारा राजभाषा घोषणा संबंधी कुछ शब्दों की चर्चा करना चाहता हूं । देश के संविधान में हिंदी को ‘संघ की राजभाषा’ घोषित किया गया है । संविधान सभा की बैठक सन् 1949 में 12 से 14 सितंबर तक चली थी, जिसमें संविधान को मौलिक तथा अंतिम रूप दे दिया गया और कालांतर में वह 26 जनवरी, 1950, से प्रभावी भी हो गया । उस बैठक के अंतिम दिन (14 सितंबर) काफी जद्दोजेहद के बाद संघ की भाषा के रूप में हिंदी को बहुमत से स्वीकार कर लिया गया । हिंदी को उस दिन मिली ‘राजभाषा’ की उपाधि और तत्पश्चात् अगले वर्ष (1950) की उसी तारीख से बतौर केंद्र सरकार के राजकाज की भाषा के रूप में हिंदी के प्रयोग के आरंभ की स्मृति में प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर का दिन ‘हिंदी दिवस’ के रूप में मनाया भी जाता है । दिवस मनाने का यह सिलसिला तब से चला आ रहा है, कुछ हद तक साल दर साल घटते उत्साह के साथ और विशुद्ध औपचारिकता की भावना से !

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