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यह एक परंपरा-सी बन गई है कि विशेष अवसरों पर लोग संस्कृत भाषा आधारित वाक्यांशों या सूक्तियों का प्रयोग करते हैं । केंद्रीय सरकार के मोहर या सील पर ‘सत्यमेव जयते’ अंकित रहता है इसे सभी जानते हैं । इसी प्रकार ‘अतिथिदेवो भव’, ‘अहिंसा परमो धर्म’, ‘विद्यया९मृतमश्नुते’, ‘योगक्षेमं वहाम्यहम्’, आदि जैसी उक्तियां प्रसंगानुसार देखने को मिल जाती हैं । निमंत्रणपत्रों पर गणेश वंदना अथवा देवी-देवताओं की वंदना के श्लोकों का प्रचलन भी आम बात है । मैंने कई बार देखा है कि इनका उल्लेख वर्तनी की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण रहता है । इस विषय पर मैंने पहले भी अपनी बातें लिखी हैं (देखें 7 मार्च 2011 की प्रविष्टि)

कल के अपने हिंदी अखबार के मुखपृष्ठ पर पूरे पेज का एक विज्ञापन मुझे देखने को मिला । विज्ञापन किसी कोचिंग संस्था का है और पूरा का पूरा अंग्रेजी में है । फिर भी उसमें गुरुमहिमा को रेखांकित करने के लिए अधोलिखित श्लोक का उल्लेख है, जिसे मैं यथावत् प्रस्तुत कर रहा हूं:

गुरुः ब्रह्मा गुरुः विष्णुः, गुरुः देवो महेश्वरा ।
गुरुः साक्षात परब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥

इस श्लोक के उद्धरण में एकाधिक त्रुटियां देखी जा सकती हैं । प्रथम तो यह है कि ‘महेश्वरा’ के स्थान पर ‘महेश्वरः’ होना चाहिए । दूसरा ‘साक्षात’ को हलंत अर्थात् ‘साक्षात्’ होना चाहिए । पद्यरचना के संस्कृत भाषा के नियमों के अनुसार छंदों (श्लोकों) में पदों (शब्दों) को परस्पर संधि करके लिखना अनिवार्य है । उक्त श्लोक में कुछ स्थलों पर ‘विसर्ग’ का ‘र्’ होकर अगले पद के साथ संधि होनी चाहिए । यह तीसरी त्रुटि समझी जानी चाहिए ।  इसके अतिरिक्त मेरे मत में ‘श्री गुरुवे’ सामासिक पद के रूप में अर्थात् ‘श्रीगुरवे’ लिखा जाना चाहिए; गुरुवे नहीं गुरवे। परब्रह्मा के स्थान पर परब्रह्म होना चाहिए । इन त्रुटियों के निवारण के बाद सही श्लोक यों लिखा जाना चाहिए:

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

(शाब्दिक अर्थः गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरु देव महेश्वर शिव हैं, गुरु ही वस्तुतः परब्रह्म परमेश्वर हैं; ऐसे श्रीगुरु के प्रति मेरा नमन है । गुरु ज्ञान-दाता अपने से श्रेष्ठ व्यक्ति होता है । उक्त श्लोक में यह भाव व्यक्त हैं कि परमात्मा का ज्ञान पाने, उस तक पहुंचने, का मार्ग गुरु ही होते हैं । ‘श्री’ सम्मान, प्रतिष्ठा, या ऐश्वर्यवत्ता का द्योतक है और नामों के साथ आदरसूचक संबोधन के तौर पर प्रयुक्त होता है ।)

इस बात पर भी ध्यान दें परंपरानुसार संस्कृत में ‘कॉमा’ का प्रयोग नहीं होता, क्योंकि यह विराम चिह्न संस्कृत का है नहीं । आधुनिक संस्कृत-लेखक इसे प्रयोग में लेने लगे हैं । काफी पहले छपे ग्रंथों में इनका अभाव देखने को मिलेगा ।

मैं समझता हूं कि संस्कृत छंदों/सूक्तियों का प्रयोग करके उसे प्रभावी बनाने की कोशिश विविध मौकों पर की जाती है, कदाचित् अपने समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का स्मरण कराने के लिए । ‘कोटेशनों’ का प्रयोग साहित्य में नई बात नहीं है । लिखित सामग्री को प्रभावी बनाने के लिए ऐसा किया ही जाता है । विज्ञापनों में भी उनका सम्मिलित किया जाना अनुचित नहीं है । परंतु जब उनके लेखन में सावधानी नहीं बरती गई हो और दोषपूर्ण वर्तनी प्रयोग में ली गई हो तो मुझ जैसे लोगों को वह खलता है । पाठ्य सामग्री के अंतर्गत कहीं बीच में ऐसी त्रुटियां अक्सर रहती हैं, और वे बहुत नहीं खलती हैं । किंतु जब वे शीर्षक के तौर पर प्रयुक्त हों, या ऐसे स्थल पर हों जहां सहज ही ध्यान चला जाता हो, अथवा जब उन पर बरबस नजर पड़ने जा रही हो, तब मुझे बेचैनी होने लगती है ।

यह सच है कि अधिकतर लोगों का संस्कृत विषयक ज्ञान नहीं के बराबर रहता है । वे किसी उक्ति/कथन को अपने लेखन में उस रूप में शामिल कर लेते हैं जिस रूप में उसे उन्होंने कहीं देखा या सुना होता है । आम तौर पर वे इस संभावना पर ध्यान नहीं देते कि उसमें त्रुटि भी हो सकती है । मेरा मत है कि जिस बात के सही/गलत का समुचित ज्ञान उन्हें न हो उसके बारे में किसी जानकार से सलाह लेनी चाहिए । मैं समझता हूं जिन शब्दों को आप लाखों टीवी दर्शकों के सामने दिखा रहे हों, अथवा जो अखबार आदि के प्रमुख स्थलों पर अनेक जनों की दृष्टि में आने के लिए मुद्रित हों, उनमें त्रुटियां न हों इसकी सावधानी बरती जानी चाहिए । मुझे लगता है उपर्युक्त विज्ञापन में ऐसी सावधानी नहीं बरती गई है ।

इस समय एक और उदाहरण मेरे ध्यान में आ रहा है । आजकल किस टीवी चैनल पर एक धारावाहिक दिखाया जा रहा है जिसका नाम है ‘सौभाग्यवती भवः’ । ऐसा लगता है कि निर्माता ने इस नाम को चुनने में सावधानी नहीं बरती । वास्तव में संस्कृत व्याकरण के अनुसार ‘भवः’ सर्वथा गलत है । इसके स्थान पर बिना विसर्ग के ‘भव’ होना चाहिए ।

आरंभ में मैंने ‘सत्यमेव जयते’ का जिक्र किया है । मुझे शंका है कि भी उसमें एक छोटी-सी व्याकरणमूलक त्रुटि है । इस बारे में मैंने अन्यत्र पहले कभी लिखा है । – योगेन्द्र जोशी