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‘इंग्लिश वर्ड्‌ज’ की भरमार हिन्दी में

नवम्बर 11, 2008

मैं दैनिक समाचारपत्र ‘हिन्दुस्तान’ (लखनऊ संस्करण) का नियमित पाठक हूं । इस समाचारपत्र के साथ सप्ताह में कुछएक दिन ‘रीमिक्स’ नामक परिशिष्ट भी पाठकों को मिलता है । इस परिशिष्ट को देखकर मुझे ऐसा लगता है कि इसकी सामग्री आज के युवा पाठकों को ध्यान में रखकर ही चुनी जाती है । इसमें बहुत कम ऐसी विषयवस्तु मिलेगी जो मुझ जैसे उम्रदराज लोगों की रुचि की हो । इस बारे में मुझे कोई आपत्ति नहीं है । किंतु जो मेरे समझ से परे और कुछ हद तक मुझे अस्वीकार्य लगता है वह है इसमें अंग्रेजी के शब्दों का खुलकर इस्तेमाल किया जाना, भले ही उनके तुल्य शब्दों का हिन्दी में कोई अकाल नहीं है । ऐसा प्रतीत होता है कि ‘रीमिक्स’ की भाषा उन युवाओं को समर्पित है जो बोलने में तो हिंग्लिश के आदी हो ही चुके हैं और अब उसे बाकायदा लिखित रूप में भी देखना चाहेंगे । मैं समझता हूं कि उक्त समाचारपत्र का संपादक-मंडल यह महसूस करना है कि आने वाला समय वर्णसंकर भाषा हिंग्लिश का है और उसे आज ही व्यवहार में लेकर सुस्थापित किया जाना चाहिए ।

(‘हिन्दुस्तान’ समाचारपत्र वेबसाईट http://hindustandainik.com/ पर पढ़ा जा सकता है । यह ‘ई-पेपर’ के रूप में भी उपलब्ध है ।)

मैं अपनी बातें उक्त ‘रीमिक्स’ (हिन्दुस्तान, १० नवंबर) के इस उदाहरण से आरंभ करता हूं:
‘प्रॉब्लम: ऑयली स्किन की, सॉल्यूशन: वाटरबेस्ड फाउंडेशन’

यह है ‘रीमिक्स’ के दूसरे पृष्ठ के एक लेख का शीर्षक । मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि यह वाक्यांश हिन्दी का है या अंग्रेजी का, जो देवनागरी लिपि में लिखा गया हो । हिन्दी के नाम पर इसमें मात्र एक पद है: ‘की’, शेष सभी अंग्रेजी के पद हैं । यदि देवनागरी लिपि हिन्दी की पहचान मान ली जाये तो इसे हिन्दी कहा ही जायेगा, भले ही पाठ फ्रांसीसी का हो या चीनी भाषा का । पर मुझे संदेह है कि कोई वैसा भी सोचता होगा । और अगर आप यह मानते हैं कि अंग्रेजी के सभी शब्द तो अब हिन्दी के ही मान लिए जाने चाहिए, तब मेरे पास आगे कुछ भी कहने को नहीं रह जाता है । उस स्थिति में आगे कही जा रही बातों पर नजर डालने की जरूरत भी आपको नहीं हैं । आगे की उन बातों को फिजूल कहकर अनदेखा करना होगा ।

दो और लेखों के शीर्षक भी मुझे इसी प्रकार के दिखे:
‘फैशन: फ्यूजन ज्वेलरी – पसंद माडर्न वुमन की’
(जिसके सात शब्दों में मात्र दो हिन्दी के हैं, या तीन, अगर फैशन हिन्दी का मान लिया जाये तो ।)
‘रिश्ते: वीकेंड का खुमार लाए मैरिड लाइफ में बहार’
(जिसमें सौभाग्य से आधे से कम शब्द ही अंग्रेजी के हैं ।)

संदर्भगत ‘रीमिक्स’ में कुछ स्थायी स्तंभ छपते हैं । मुझे लगता है कि संपादक-मंडल ने अंग्रेजी के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए ही उनके नाम अंग्रेजी में चुने होंगे । ये हैंः
पृष्ठ १ – ‘मेंस वर्ल्ड’; ‘वुमन इन न्यूज’; ‘कोट-अनकोट’
पृष्ठ २ – ‘पेरेंटिंग’; ‘मेन्यू मैनेजमेंट’
पृष्ठ ३ – ‘मदर्स कार्नर’; ‘वेडिंग सीजन’; ‘हेल्थ वॉच’
पृष्ठ ४ – ‘गॉसिप’; ‘इन फोकस’; ‘बॉलीवुड न्यूज’

मैं यह नहीं समझ पाता कि इन शीर्षकों के लिए ‘पुरुषों का संसार’, ‘समाचारों में महिला’, ‘कही-अनकही’, ‘लालन-पालन’ आदि जैसे शीर्षक क्यों नहीं स्वीकार्य हो सकते हैं ? युवा पीढ़ी अब अंग्रेजी अपनाती जा रही है का तर्क देकर क्या ऐसे प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ? युवा पीढ़ी कुछ भी करने लगे तो उसे ‘ठीक ही तो है’ कहकर उसी के अनुसार चीजें की जानी चाहिए क्या ?

अपने इस स्वतंत्र देश में वास्तविक स्वतंत्रता है । जिसको जो पसंद हो वह उसे कर सकता है; और जो उसके विरुद्ध हो वह भी हल्ला कर सकता है । वैयक्तिक स्वतंत्रता के नाम पर दोनों ही पक्षों को इस बात की छूट है कि वे अपने-अपने मन की करें । ऐसी छूट शायद ही किसी और देश में हो । फ्रांस और मलेसिया, दोनों ही स्वतंत्र राष्ट्र हैं, परंतु जैसा मुझे मालूम है ऐसी भाषाई छूट वहां नहीं; कुछ मर्यादाएं हैं वहां ।

इसलिए हिन्दी के साथ किये जा रहे तमाम प्रयोगों के विरुद्ध मैं कुछ नहीं कर सकता । पर स्वतंत्रता का लाभ उठाते हुए मैं भी अपने मन की भड़ास निकाल सकता हूं ।

मैं लोगों के मुख से अक्सर यह तर्क सुनता हूं कि हमें अन्य भाषाओं (दैट मीन्ज इंग्लिश फॉर ऑल प्रैक्टिकल पर्पसेज !) से अधिकाधिक शब्दों को हिन्दी में शामिल करना चाहिए । पर क्या इस बारे में कोई मर्यादा नहीं होनी चाहिए ? क्या जिसकी जो मर्जी जहां चाहे अंग्रेजी के शब्दों को ठूंस दे ? और अगर ऐसा करने पर हिन्दी न रहकर एक नयी भाषा लगने लगे तो भी ऐसा करना चाहिए ?

और अधिक महत्त्व का सवाल यह हैः हिन्दी के साथ ऐसा प्रयोग किसको ध्यान में रखकर किया जा रहा है ? जिस अंग्रेजीकृत हिन्दी को हम बढ़ावा दे रहे हैं उसे क्या अंग्रेजी न जानने वाले हिन्दीभाषी समझ सकते हैं ? मुझे लगता है कि हिन्दी क्षेत्रों से निकले पढ़े-लिखे लोगों के हाल सावन के अंधे की तरह है, जिसके लिए यह मुहावरा प्रचलित हैः ‘सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता है’ । अर्थात् खुद अंग्रेजी क्या सीख ली कि सोचने लगे कि हर हिंदुस्तानी को अंग्रेजी आती है । आम लोगों में कितने होंगे जो सॉल्यूशन, वाटरबेस्ड, फाउंडेशन, फ्यूजन, कम्म्युनिकेशन, एट्टिट्यूड, डिफरेंस आदि शब्दों के अर्थ समझते होंगे ?

पढ़े-लिखे लोग अंग्रेजी शब्दों के प्रति उदार रवैया बरतते हुए हिन्दी में उन्हें खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं । सवाल उठता है हि उनकी यह उदारता हिन्दी शब्दों के प्रति क्यों नहीं है ? क्यों नहीं वे अंग्रेजी में भी हिन्दी के शब्द यदा-कदा प्रयोग में ले लेते हैं ? लेकिन नहीं, वे कुछ देर सोचने भले लगें, पर हिंदी का एक भी लफ्ज वे भूले से नहीं बोलेंगे । वाह रे एक-तरफा उदारता !
अभी गनीमत है कि ऐसा चलन साहित्यिक रचनाओं और मुद्रित समाचारों में कम ही है । हलके-फुलके लेखों और हास्य-व्यंग की रचनाओं में थोड़ा प्रभाव दीखने लगा है । परंतु मौखिक पत्रकारिता में खुलकर अंग्रेजी शब्द प्रयुक्त हो रहे हैं । अगर आप हिन्दी टीवी चैनलों पर गौर करें तो देखेंगे कि वहां का आम हिन्दी पत्रकार हिन्दी छोड़ हिंग्लिश में समाचार दे रहा है । क्या यह माना जाये कि वे आम आदमी की समझ की हिन्दी बोल रहें हैं ? जी नहीं, पूरा प्रकरण यह दर्शाता है कि उनका हिन्दी ज्ञान सतही रह गया है । जिस पत्रकार की भाषायी पकड़ हिन्दी पर होनी चाहिए वह मौके के अनुकूल शब्दों को सोच तक नहीं पाता है । मुझे सचमुच उनके हिन्दी ज्ञान पर तरस आता है ।

हम यह भूल जाते हैं कि आम हिंदुस्तानी अंग्रेजी लेकर वस्तुतः परेशान है । यह देश का दुर्भाग्य है कि हिन्दी केवल नाम के लिए राजभाषा कहलाती है । उसकी इज्जत वे ही नहीं कर रहे हैं जो उसे अपनी मातृभाषा कहते हैं । बस कहते भर हैं, आगे कुछ नहीं ! – योगेन्द्र

4 Responses to “‘इंग्लिश वर्ड्‌ज’ की भरमार हिन्दी में”


  1. अच्छा लेख, कुछ दिनों में ये हिंग्लिश को देवनागरी और अंग्रेजी में भी लिखने लगेंगे।

  2. Prashant Says:

    पढ़े-लिखे लोग अंग्रेजी शब्दों के प्रति उदार रवैया बरतते हुए हिन्दी में उन्हें खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं । सवाल उठता है हि उनकी यह उदारता हिन्दी शब्दों के प्रति क्यों नहीं है ? क्यों नहीं वे अंग्रेजी में भी हिन्दी के शब्द यदा-कदा प्रयोग में ले लेते हैं ? लेकिन नहीं, वे कुछ देर सोचने भले लगें, पर हिंदी का एक भी लफ्ज वे भूले से नहीं बोलेंगे । वाह रे एक-तरफा उदारता !

    aapne sahi kaha.. main apni baat yahan rakhna chahunga.. jab main office me official baten karta hota hun tab main bhi 1 shabdh hindi ke nahi nikalta hun.. magar jab baaten official na ho to jaanboojh kar english bote huye hindi ke shabd bolta hun aur uska matlab english me batata hun.. aisa karte karte meri team ke adhiktar log ab hindi samajhne lage hain.. (main chennai me rahta hun aur mere sath kaam karne vaale sabhi tamilnadu ke hain aur unhe hindi nahi aati thi..) 🙂


  3. ये लोग पत्रकारिता के वर्मसंकर हैं इसी विषय पर मेरी पोस्ट पढेंhttp://merachithha.blogspot.com/2007/09/blog-post.html


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