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(मई 17, 2009 की पोस्ट के आगे) अपने देश की संघीय ‘राजभाषा’ हिंदी एवं विभिन्न प्रदेशों की अपनी-अपनी ‘राज्यभाषाओं’ से संबंधित निर्णय संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 343 से 351 में सम्मिलित किये गये हैं । राजभाषा नीति के अनुसार

“संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है । संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप है । {संविधान का अनुच्छेद 343(1)}”

स्वतंत्रता के समय तक देश तथा राज्यों का राजकाज अंगरेजी में चल रहा था । अंगरेजी से मुक्त होकर ‘राजभाषा’ एवं ‘राज्यभाषाओं’ को रातोंरात व्यवहार में ले पाना व्यावहारिक नहीं हो सकता था इस बात को समझ पाना कठिन नहीं है । इसी के मद्देनजर आरंभ में यह निर्णय लिया गया था कि संविधान के लागू होने के 15 वर्षों तक, यानी 26 जनवरी 1965 तक, शासकीय कार्य हिंदी और अंग्रेजी, दोनों, में चलेंगे, और उस अंतराल में प्रयास किये जायेंगे कि हिंदी का प्रसार तथा व्यवहार तेजी से हो, ताकि पूरे देश में राजकीय कार्यों में वह इस्तेमाल होने लगे और अंग्रेजी का प्रयोग समाप्त हो जावे । इस बात पर भी जोर दिया गया था कि अहिंदीभाषी राज्यों की दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए राज्यों की भाषाएं भी आवश्यकतानुसार प्रयोग में ली जावें ।

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