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मैं दैनिक समाचारपत्र ‘हिन्दुस्तान’ (लखनऊ संस्करण) का नियमित पाठक हूं । इस समाचारपत्र के साथ सप्ताह में कुछएक दिन ‘रीमिक्स’ नामक परिशिष्ट भी पाठकों को मिलता है । इस परिशिष्ट को देखकर मुझे ऐसा लगता है कि इसकी सामग्री आज के युवा पाठकों को ध्यान में रखकर ही चुनी जाती है । इसमें बहुत कम ऐसी विषयवस्तु मिलेगी जो मुझ जैसे उम्रदराज लोगों की रुचि की हो । इस बारे में मुझे कोई आपत्ति नहीं है । किंतु जो मेरे समझ से परे और कुछ हद तक मुझे अस्वीकार्य लगता है वह है इसमें अंग्रेजी के शब्दों का खुलकर इस्तेमाल किया जाना, भले ही उनके तुल्य शब्दों का हिन्दी में कोई अकाल नहीं है । ऐसा प्रतीत होता है कि ‘रीमिक्स’ की भाषा उन युवाओं को समर्पित है जो बोलने में तो हिंग्लिश के आदी हो ही चुके हैं और अब उसे बाकायदा लिखित रूप में भी देखना चाहेंगे । मैं समझता हूं कि उक्त समाचारपत्र का संपादक-मंडल यह महसूस करना है कि आने वाला समय वर्णसंकर भाषा हिंग्लिश का है और उसे आज ही व्यवहार में लेकर सुस्थापित किया जाना चाहिए ।

(‘हिन्दुस्तान’ समाचारपत्र वेबसाईट http://hindustandainik.com/ पर पढ़ा जा सकता है । यह ‘ई-पेपर’ के रूप में भी उपलब्ध है ।)

मैं अपनी बातें उक्त ‘रीमिक्स’ (हिन्दुस्तान, १० नवंबर) के इस उदाहरण से आरंभ करता हूं:
‘प्रॉब्लम: ऑयली स्किन की, सॉल्यूशन: वाटरबेस्ड फाउंडेशन’

यह है ‘रीमिक्स’ के दूसरे पृष्ठ के एक लेख का शीर्षक । मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि यह वाक्यांश हिन्दी का है या अंग्रेजी का, जो देवनागरी लिपि में लिखा गया हो । हिन्दी के नाम पर इसमें मात्र एक पद है: ‘की’, शेष सभी अंग्रेजी के पद हैं । यदि देवनागरी लिपि हिन्दी की पहचान मान ली जाये तो इसे हिन्दी कहा ही जायेगा, भले ही पाठ फ्रांसीसी का हो या चीनी भाषा का । पर मुझे संदेह है कि कोई वैसा भी सोचता होगा । और अगर आप यह मानते हैं कि अंग्रेजी के सभी शब्द तो अब हिन्दी के ही मान लिए जाने चाहिए, तब मेरे पास आगे कुछ भी कहने को नहीं रह जाता है । उस स्थिति में आगे कही जा रही बातों पर नजर डालने की जरूरत भी आपको नहीं हैं । आगे की उन बातों को फिजूल कहकर अनदेखा करना होगा । आगे पढ़ने के लिए क्लिक करें >>