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विगत पोस्ट (२ जनवरी, २००९) के आगे । इस ब्लॉग पर प्रस्तुत मेरे लेख-शृंखला का उद्येश्य रहा है उन कुछ शब्दों की चर्चा करना, जिन्हें हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में सुनते और प्रयोग में लेते रहते हैं । चयनित शब्द केवल उदाहरण मात्र हैं । ऐसे अनेकों शब्द गिने जा सकते हैं जिनके अर्थ इतने स्पष्ट या असंदिग्ध नहीं होते हैं जितने हवा-पानी, देश-विदेश, मीठा-खट्टा या अंधकार-प्रकाश जैसे शब्दों के । मैं उन शब्दों की बात कर रहा हूं जिनके अर्थ श्रोता ठीक वही नहीं समझ रहा होता है जो वक्ता के मन में अपनी बात कहते समय रहती हैं । यह लेख शृंखला की अंतिम किश्त है । मैं स्वयं आश्वस्त नहीं हूं कि मेरी बातें पाठकगण ठीक वैसे ही समझ पा रहे होंगे जैसा कि मेरे मन में हैं । संभव है कि मैं कुछ कह रहा हूं और वे कुछ अलग ही समझ रहे हों ! आगे पढ़ने के लिए >>यहां क्लिक करें