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क्षेत्रियता एवं भाषाई विविधता

एक बार मेरा साक्षात्कार संयोग से एक ताईवानी (Taiwanese) युवक से हुआ था । अंग्रेजी में संपन्न बातचीत में उसने बताया था कि वह उत्तरी चीनी भाषा (Northern Chinese Language) मुश्किल-से ही समझ पाता है । चीनी भाषा के बारे में अधिक जानकारी लेने पर मुझे पता चला कि मानकीकृत चीनी मैंडरिन (Chinese Mandarin) की लिपि सर्वत्र (मुख्य भूमि चीन और ताइवान, दोनों देशों, में) एक होने और उसके ‘अक्षरों’ अर्थात् कैरेक्टरों (Characters) के अर्थ भी समान होने के कारण लिखित दस्तावेजों को पढ़ना-लिखना प्रायः सभी चीनीभाषियों के लिए संभव होता है । किंतु उसके कैरेक्टरों के उच्चारण सर्वत्र अनिवार्यतः एक नहीं रहते । फलतः कभी-कभी उच्चारणमूलक स्थानीय अंतर इतना अधिक होता है कि अलग-अलग क्षेत्रों के लोग एक-दूसरे की गदित भाषा समझ नहीं पाते । वस्तुतः किसी चीनी कैरेक्टर के लिखित निरूपण को देखकर उसके उच्चारण का अनुमान नहीं लगाया जा सकता । चित्र के दृष्टांत पर गौर करें:

दूसरे शब्दों में चीनी भाषा के हर उच्चारित शब्द के लिखित निरूपण और हर लिखित कैरेक्टर के उच्चारण को स्वतंत्र रूप से सीखना पड़ता है । वर्तनी तथा उच्चारण में जैसा घनिष्ट संबंध भारतीय भाषाओं, और काफी हद तक यूरोपीय भाषाओं, में देखने को मिलता है, वह चीनी भाषा में नहीं दिखता । कहा जाता है कि इस भाषा के कामचलाऊ ज्ञान के लिए करीब दो हजार कैरेक्टरों की जरूरत होती है, जब कि पांच हजार कैरेक्टरों की संपदा पर्याप्त मानी जाती है । यों कुल कैरेक्टरों की संख्या पचास हजार के कम नहीं आंकी जाती है । इस संदर्भ में अधिक जानकारी पिन्-यिन् (http://www.pinyin.info/chinese_characters/) एवं विकीपीडिया (http://en.wikipedia.org/wiki/Chinese_language) वेब साइट पर मिल सकती है ।

इंग्लिश: ब्रिटिश, अमेरिकन, इंडियन आदि

भौगोलिक दूरी के साथ उच्चारित चीनी भाषा में दृश्यमान् अंतर समझ में आता है । लेकिन यह अंतर अन्य भाषाओं में भी देखने को मिलता है, खास तौर पर उन भाषाओं में जो भौगोलिक दृष्टि से एक-दूसरे से विलग तथा दूरस्थ क्षेत्रों में प्रचलित हों । इस प्रकार ब्राजील में ठीक वही पुर्तगाली नहीं बोली जाती है, जो पुर्तगाल में प्रचलित है । कुछ ऐसा ही अंतर अन्य लैटिन अमेरिकी देशों की स्पेनी तथा स्पेन देश की स्पेनी भाषा में देखने को मिलता है । इसी प्रकार के क्षेत्रीयतामूलक अंतर के कारण भाषाविद् अंग्रेजी को ‘ब्रिटिश इंग्लिश’, ‘अमेरिकन इंग्लिश’ तथा ‘इंडियन इंग्लिश’ आदि प्रकार से वर्गीकृत करते हैं । ‘ब्रिटिश इंग्लिश’ से तात्पर्य आम तौर पर ‘लंडनर्स इंग्लिश’ से लिया जाता है । ब्रिटेन में भी अंग्रेजी के ‘स्कॉटिश इंग्लिश’ तथा ‘वेल्स इंग्लिश’ जैसे भेद सुनने को मिलते हैं ।

अवश्य ही किसी भाषा के अलग-अलग क्षेत्रों के अवतारों में अंतर उच्चारण के अतिरिक्त प्रचलित शब्दसंग्रह, वर्तनी, तथा व्याकरण के कारण भी हो सकते हैं । अमेरिकियों ने कभी वर्तनी सरलीकरण का अभियान चलाया था, जो बहुत सफल नहीं हुआ पर उसका असर हुआ जरूर, जैसे centre, colour (ब्रिटेन) का center, color (अमेरिका), आदि । शाब्दिक अंतर सामान्य बात है और स्थानीय आवश्यकताओं, सामाजिक परिस्थितियों एवं लोक रुचियों के कारण जन्म लेते हैं । उदाहरणार्थ जिस बैंगन को हम brinjal कहते हैं उसे ब्रिटेन में aubergine कहा जाता है और उत्तर अमेरिका में eggplant अथवा garden egg । हमारे यहां के groundnut (मूंगफली) को शायद ही कोई ब्रितानी जानता हो; वहां उसे peanut कहते हैं । इसी प्रकार हमारा ladies fingers (भिंडी) अन्यत्र okra के नाम से पुकारा जाता है । ऐसे कई अन्य शब्द खोजे जा सकते हैं ।

किंतु व्याकरण संबंधी अंतर विरले ही होते हैं, क्योंकि व्याकरण के नियम गंभीर एवं स्थायित्व लिए रहते हैं, और वे परस्पर भी संबद्ध रहते हैं । किसी एक स्थल पर का परिवर्तन व्यापक स्तर की प्रभाविता रखता है, और तदनुसार भाषा का ढांचा ही बदल सकता है । फिर भी कभी-कभी तत्संबंधित सूक्ष्म अंतर देखने को मिल ही जाते हैं, उदाहरणार्थ जहां एक अंग्रेज ‘I have no money’ कहेगा, वहीं एक अमेरिकी कहेगा ‘I do not have money’ ।

मेरा अनुमान है कि एक भौगोलिक क्षेत्र से दूसरे तक जाते-जाते जो अंतर भाषाओं में नजर आता है उसमें सबसे अधिक अहमियत शब्दों के उच्चारण-भेद की रहती है । आम तौर पर यही देखने में आता है कि किसी एक भौगोलिक क्षेत्र के रहने वालों के बीच रोजमर्रा प्रचलित भाषा उच्चारण की दृष्टि से एक जैसी ही रहती है । इसीलिए भाषाई दृष्टि से सचेत जानकार लोग सरलता से पहचान लेते हैं कि वे किस क्षेत्र की गदित भाषा सुन रहे हैं । बीबीसी (BBC) तथा सीएनएन (CNN) टीवी चैनलों के समाचार प्रस्तोताओं की अंग्रेजी में स्पष्ट भेद सुनाई देता है । अमेरिकी राजनेताओं की अंग्रेजी एक जैसी सुनाई देगी और वह ब्रिटिश नेताओं से साफ तौर पर भिन्न रहेगी । रेडियो पर चीनी-कोरियाई समाचार वाचक अलग से पहचान में आ जाएंगे । इसलिए अमेरिकन इंग्लिश, ब्रिटिश इंग्लिश जैसा वर्गीकरण माने रखता है ।

इंडियन इंग्लिश: व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर अर्थ/उच्चारण

लेकिन जब ‘इंडियन इंग्लिश’ की बात होती है तो वह किस इंग्लिश की ओर संकेत करता है यह मैं नहीं समझ पाता । ‘अनेकता में एकता’ की जो उक्ति इस देश के लिए प्रचलित है वह यहां की अंग्रेजी पर भी लागू होती है । यहां की अंग्रेजी की विविधता मुख्यतः उच्चारण के कारण रहती है । प्रायः हर भारतीय की अंग्रेजी अपने ही किस्म की होती है । देश के अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों की अंग्रेजी में अंतर समझ में आता है, किंतु यहां तो एक ही कक्षा के छात्रों की अंग्रेजी में अंतर मिल जाएगा, एक ही विद्यालय के अध्यापकों की अंग्रेजी असमान मिलेगी, एक ही कार्यालय के कर्मियों के उच्चारण में स्पष्ट भेद दिखेगा, मोहल्ले के दो पड़ोसियों की अंग्रेजी में फर्क आम बात है, इत्यादि । परस्पर के इस भेद के पीछे लोगों की सामाजिक पृष्ठभूमि तथा आरंभिक स्कूली शिक्षा प्रमुख कारण माने जा सकते हैं । चूंकि अंग्रेजी भारत की जनभाषा नहीं है, इसलिए उसमें एकरूपता नहीं आ पाई है । हमारी अंग्रेजी किताबी अधिक है, परस्पर वार्तालाप से सीखी गयी कम है ।

अंग्रेजी की इस विविधता का अनुभव कुछएक दृष्टांतों के माध्यम से किया जा सकता है । मेरे ध्यान में जो बात सबसे पहले आती है वह है इन वाक्यों का जोड़ाः “परीक्षा लेना” तथा “परीक्षा देना” । चूंकि अंग्रेजी में ‘लेना’ to take ‘देना’ to give होता है, अतः स्वाभाविक तौर पर कई हिंदुस्तानी “परीक्षा देना” का अंग्रेजी अनुवाद to give a test करते हैं । इस प्रकार “हम परीक्षा देते हैं ।” अथवा “We give a test.” कहने वाले छात्र आपके इर्दगिर्द मिल जाएंगे, और वहीं “We take a test.”(सही) कहने वाले छात्र भी मिलेंगे । इसी प्रकार “I take a test.”(गलत) कहने वाले शिक्षक भी ढूढ़ने पर मिल जाएंगे ।

कुछ यही हाल cousin शब्द का है । कई लोग male/female cousin के लिए cousin brother/sister इस्तेमाल करते हैं, लेकिन सब नहीं । एक और उदाहरण: कई जनों को मैंने typical शब्द का प्रयोग उन मौकों पर करते देखा है, जहां उन्हें असल में atypical या peculiar का भाव व्यक्त करना होता है । ऐसे में वक्तव्य का अर्थ ही उलट जाता है । यह बात अलग है कि ऐसे त्रुटिपूर्ण कथनों के अर्थ श्रोता अक्सर प्रसंग तथा पूर्व के अनुभवों के आधर पर लगा ही लेता है । किंतु इंडियन इंग्लिश आखिर है क्या यह सवाल तो खड़ा हो ही जाता है ।

उच्चारण भेद का भी एक दिलचस्प उदाहरण ये हैः मेरा अनुमान है कि अधिकांश हिंदुस्तानी इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि अंग्रेजी शब्द of का उच्चारण ‘ऑव्’ या ‘अव्’ होता है, न कि ‘ऑफ्’ जो कि off का उच्चारण है । किंतु मैंने प्रायः सभी के मुख से ‘ऑफ्’ सुना है, कई समाचार वाचक/वाचिकाओं के मुख से भी । इसी प्रकार ghost का ‘घोष्ट’ (‘गोस्ट’ के बदले) उच्चारण भी आम प्रचलन में है । (अंग्रेजी में ‘घ’ ध्वनि नहीं है ।) लोगों के मुख से ‘हैप्पी’ (happy), ‘फुल्ली’ (fully), ‘कैन्नॉट’ (cannot) शब्द भी अक्सर सुनने को मिल जाते हैं । (ऐसी संयुक्त व्यंजन ध्वनियां अंग्रेजी में नहीं हैं ।) अंत में आम भारतीय adjective, adjust, adjacent, adjourn आदि शब्दों को ‘ड’ की स्पष्ट ध्वनि के साथ बोलता है (यथा ‘एड्जेक्टिव’ आदि) जब कि मानक अंग्रेजी के अनुसार इन सभी में ‘ड्’ अनुच्चारित (साइलेंट) रहना चाहिए ।

इस प्रकार के अनेकों भेद हैं जो हमारी अंग्रेजी को उच्चारण संबंधी विविधता प्रदान करती हैं । ‘स्पोकन इंडियन इंग्लिश’ में विविधता कुछ हद तक बलाघात (accent) और सुर के उतार-चढ़ाव (intonation) के प्रति चैतन्य के अभाव के कारण भी है ऐसा मेरा मत है ।

भारतीयों की अंग्रेजी में असमानता के मूल तथा प्रमुख कारणों पर विचार आगामी लेख में । – योगेन्द्र जोशी